“Megh Aaye,” Bhavarth of The 12th Chapter Of The Class 9 Hindi Book “Kshitij,” Written By Sarveshwar Dayal Saxena . Making It An Essential Read For Class 9 Students. In This Article, We Provide A Detailed Bhavarth Of Megh Aaye.
पुस्तक: | क्षितिज |
कक्षा: | 9 |
पाठ: | 12 |
शीर्षक: | मेघ आए |
लेखक: | सर्वेश्वर दयाल सक्सेना |
Megh Aaye Bhavarth In Hindi
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।
भावार्थ:
कवि बताते हैं कि जब मेघ धूमधाम और सज-धज के साथ आते हैं, तो उनका आगमन बहुत खास लगता है। जैसे दामाद अपने ससुराल बड़े धूमधाम से आता है, लोग उसकी वापसी की ख़बर फैलाते हैं और उत्सुकता से दरवाजे और खिड़कियाँ खोल देते हैं। इसी तरह, जब गर्मी के बाद वर्षा ऋतु आती है और काले बादल आकाश में छा जाते हैं, तो तेज हवाएँ चलने लगती हैं, जो बादलों के आगमन की सूचना देती हैं। लोग खुशी और उत्सुकता के साथ आकाश की ओर देखते हैं।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ:
कवि ने वर्षा के आगमन पर प्रकृति के बदलावों को मानवीकरण के साथ प्रस्तुत किया है। आंधी और धूल के उड़ने से ऐसा लगता है जैसे गांव की औरतें अपने घाघरा उठाकर दौड़ रही हों। हवा के वेग से पेड़ झुक जाते हैं और अपनी गर्दन ऊँची करके मेघों को देखने की कोशिश करते हैं। नदियाँ भी ठिठक जाती हैं और अपने घूंघट को सरकाकर मेघों को देखती हैं। इस प्रकार, प्रकृति के सभी तत्व मेघों की उपस्थिति को खुशी और उत्सुकता से देख रहे हैं।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ:
कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन को दामाद के स्वागत के साथ जोड़ा है। जब दामाद लंबे समय बाद घर आता है, तो घर के बड़े-बुजुर्ग उसे सम्मानपूर्वक प्रणाम करते हैं। इसी प्रकार, पीपल का वृक्ष भी वर्षा ऋतु का स्वागत झुककर करता है। लताएँ गुस्से में छुपकर कहती हैं कि वे लंबे समय से मेघों की प्रतीक्षा कर रही थीं। तालाब खुशी से भर गया है और पानी की परात भरकर मेघों के चरणों को धोना चाहता है।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ:
कवि कहते हैं कि जैसे पत्नी अपने पति को देखकर खुशी से भर जाती है और अपने संदेह को छोड़ देती है कि वह लौटेगा या नहीं, वैसे ही जब बादल क्षितिज पर छा जाते हैं और बिजली चमकती है, तो धरती खुशी से भर जाती है। उसका संदेह समाप्त हो जाता है कि बारिश होगी या नहीं। इसके बाद, मेघों और बिजली के मिलने से पानी झर-झर कर गिरता है और धरती भीग जाती है, जो उनके मिलन की खुशी को दर्शाता है।
मेघ आए सारांश:
कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन का चित्रण बहुत सुंदर और मानवीकरण के साथ किया है। पहले, मेघों के आगमन को दामाद के ससुराल आने की घटना से जोड़ा गया है, जहाँ लोग उत्सुकता से दरवाजे और खिड़कियाँ खोल देते हैं। फिर, प्रकृति की प्रतिक्रिया का वर्णन किया गया है, जिसमें पेड़, नदियाँ और आंधी मानवीय विशेषताओं के साथ प्रस्तुत किए गए हैं। पीपल का वृक्ष भी वर्षा का स्वागत झुककर करता है और तालाब खुशी से भर जाता है। अंत में, जैसे पत्नी अपने पति के लौटने पर खुशी से भर जाती है, वैसे ही धरती को बादलों और बिजली के आगमन से संदेह समाप्त हो जाता है और पानी झर-झर कर गिरने लगता है। यह पूरे दृश्य को एक उत्सव की तरह प्रस्तुत करता है।
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