“Kaidi Aur Kokila,” Bhavarth of The 11th Chapter Of The Class 9 Hindi Book “Kshitij,” Written By Makhanlal Chaturvedi . Making It An Essential Read For Class 9 Students. In This Article, We Provide A Detailed Bhavarth Of Kaidi Aur Kokila.
पुस्तक: | क्षितिज |
कक्षा: | 9 |
पाठ: | 10 |
शीर्षक: | कैदी और कोकिला |
लेखक: | माखनलाल चतुवेर्दी |
Kaidi Aur Kokila Bhavarth In Hindi
क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल, बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल, बोलो तो!
भावार्थ:
कवि कोकिल (कोयल) की निरंतर आवाज़ और उसके गाने के उद्देश्य को समझने की कोशिश कर रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि कोकिल बार-बार क्यों गा रही है और उसकी आवाज़ में क्या संदेश छुपा है। कवि का यह प्रश्न सामाजिक परिस्थितियों और पीड़ा के संदर्भ में पूछा गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कोकिल की आवाज़ किसी महत्वपूर्ण संदेश का प्रतीक हो सकती है।
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यों आली?
भावार्थ:
इस अंश में कवि समाज की विकट स्थिति का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि ऊँची और काली दीवारें समाज की समस्याओं को दर्शाती हैं, जहाँ डाकू, चोर और बटमारों का राज है। यहाँ लोगों को पेट भरने का भी अधिकार नहीं है और मरने के लिए भी उन्हें तड़पना पड़ता है। जीवन में कड़ी निगरानी और अंधकार का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। कवि को यह समझ में नहीं आता कि इस काले समय में भी कोकिल क्यों गा रही है और उसकी आवाज़ में विद्रोह की भावना क्यों है।
क्यों हूक पड़ी?
वेदना-बोझ वाली-सी;
कोकिल, बोलो तो!
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली-सी,
कोकिल, बोलो तो!
भावार्थ:
कवि पूछते हैं कि कोकिल की आवाज़ में दर्द और वेदना की भावना क्यों है। वे जानना चाहते हैं कि इस वेदना का कारण क्या है और क्या यह किसी प्रकार के मृदुल वैभव की हानि का संकेत है। कवि को यह समझना है कि कोकिल की आवाज़ में छिपी पीड़ा किस बात की ओर इशारा कर रही है।
क्या हुई बावली?
अर्द्ध रात्रि को चीख़ी,
कोकिल, बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखी?
कोकिल, बोलो तो!
भावार्थ:
इस अंश में कवि यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कोकिल आधी रात को क्यों चीख रही है और उसकी आवाज़ में किस प्रकार की ज्वालाएँ या आग की लपटें महसूस की जा रही हैं। कवि को कोकिल की चीख में किसी बड़े संकट या आंतरिक आग की झलक दिखाई देती है और वे जानना चाहते हैं कि इसका कारण क्या है।
क्या?—देख न सकती जंज़ीरों का पहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना!
कोल्हू का चर्रक चूँ?—जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिक्खे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
ख़ाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआँ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में ग़ज़ब ढा रही आली?
भावार्थ:
यहाँ कवि ब्रिटिश शासन की क्रूरता और दमनकारी नीतियों की आलोचना करते हैं। वे पूछते हैं कि क्या कोकिल जंजीरों और हथकड़ियों को नहीं देख सकती और क्यों ब्रिटिश शासन की कठोरता को स्वीकार कर रही है। कवि का कहना है कि ब्रिटिश राज के अत्याचार ने उनकी स्थिति को और भी बदतर बना दिया है, जिससे उनके जीवन में करुणा और पीड़ा बढ़ गई है। इसलिए, कोकिल की रात की आवाज़ भी एक प्रकार का विद्रोह और पीड़ा को व्यक्त करती है।
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल, बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल, बोलो तो!
भावार्थ:
कवि यह समझना चाहते हैं कि इस शांत और स्थिर समय में कोकिल अंधकार को क्यों चुनौती दे रही है और चुपचाप विद्रोह क्यों फैला रही है। वे जानना चाहते हैं कि उसकी मधुर आवाज़ में छिपे विद्रोह के बीज को क्यों बोया जा रहा है और इसके पीछे का उद्देश्य क्या है।
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल-कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लोह-शृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की व्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
भावार्थ:
इस अंश में कवि ने कोकिल के काले रंग की तुलना समाज की काली परिस्थितियों से की है। वह कहते हैं कि कोकिल की काली आवाज़, शासन की काली करनी, और उसकी स्वयं की स्थिति सब कुछ काला और दुखपूर्ण है। कवि के अनुसार, कोकिल की आवाज़ और उसकी स्थिति दोनों ही अंधकारमय हैं, जो समाज में व्याप्त असमानता और पीड़ा का संकेत देती हैं।
इस काले संकट-सागर पर
मरने को, मदमाती—
कोकिल, बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती?
कोकिल, बोलो तो!
भावार्थ:
कवि इस संकट और अंधकारपूर्ण स्थिति में कोकिल की चमकीली आवाज़ को लेकर आश्चर्यचकित हैं। वे जानना चाहते हैं कि कोकिल इस अंधकारपूर्ण स्थिति में भी अपनी मधुर और चमकदार आवाज़ क्यों गा रही है, जबकि उनके आस-पास का माहौल केवल दुख और संकट से भरा हुआ है।
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ भर में संचार,
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
भावार्थ:
कवि कोकिल की सुखद स्थिति और अपनी कठिन स्थिति की तुलना करते हैं। वे बताते हैं कि कोकिल को हरियाली और विस्तृत आकाश मिला है, जबकि उन्हें काली कोठरी और सीमित जीवन मिला है। कोकिल के गीत मधुर और प्रशंसा योग्य हैं, जबकि कवि की स्थिति इतनी कठिन है कि रोना भी उसे गुनाह लगता है। यह विषमता और असमानता कवि को विद्रोह और संघर्ष की ओर प्रेरित करती है।
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?—
कोकिल, बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ?—
कोकिल, बोलो तो!
भावार्थ:
कवि अपनी रचनाओं के माध्यम से और क्या कर सकते हैं, यह पूछते हैं और मोहन (कृष्ण) के व्रत पर अपने प्राणों को किसमें समर्पित कर सकते हैं, यह जानना चाहते हैं। वे कोकिल से मार्गदर्शन की उम्मीद करते हैं कि वे अपनी पीड़ा और संघर्ष के बीच किस प्रकार का सुधार या बदलाव ला सकते हैं।
कैदी और कोकिला का सारांश
यह कविता भारतीय कवि सुमित्रानंदन पंत की “कोकिल” नामक रचना है, जिसमें कवि ने कोकिल (कोयल) के माध्यम से समाज की कठिनाइयों और विषमताओं को व्यक्त किया है। कवि कोकिल से पूछते हैं कि उसकी आवाज़ में छिपे संदेश और दर्द का कारण क्या है। कविता में कवि ने ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज की दयनीय स्थिति को चित्रित किया है, जहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलतीं और उनका जीवन अत्यंत कठिन है। कवि कोकिल की मधुर आवाज़ के बावजूद, अंधकार और कष्ट से भरी जीवन की वास्तविकता को उजागर करते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने समाज की असमानता और पीड़ा की ओर इशारा किया है, और कोकिल की आवाज़ को एक विद्रोही और संघर्ष की प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है।
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